Preserving Cultural Heritage in the Digital Age

*सांस्कृतिक विरासत* का अर्थ है समाज के व्यक्तियों या समूहों की जीवनशैली जो भाषा, कला, कलाकृतियों और पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होने वाले उनके गुणों में व्यक्त होती है।सांस्कृतिक विरासत में कलाकृतियाँ, स्मारक, इमारत और संग्रहालय शामिल हैं जिनमें प्रतीकात्मक, ऐतिहासिक, कलात्मक, सौंदर्य, नृवंशविज्ञान या मानवशास्त्रीय, वैज्ञानिक और सामाजिक महत्व सहित मूल्यों की विविधता होती है।

 _संस्कृति_ – संस्कृति को आदतों, कौशल, परंपराओं, रीति- रिवाजों, धर्म, विश्वासों के योग के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।
_विरासत_ – विरासत विभिन्न स्पर्शनीय और अस्पृश्य चीजें हैं जो हमारे पूर्वजों द्वारा हमें दी जाती हैं और जिनका सांस्कृतिक या सामाजिक महत्व होता है।
सांस्कृतिक विरासत निम्न प्रकार की होती है –
1) _मूर्त संस्कृति_ (भवन, स्मारक, परिदृश्य, पुस्तकें और कलाकृतियाँ)
2) _अमूर्त संस्कृति_ (लोकगीत, परंपराएँ, भाषा और ज्ञान)
3) _प्राकृतिक विरासत_ (सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण परिदृश्य और जैव विविधता )
सभी संग्रहालय, अभिलेखागार, पुस्तकालय, मानवविज्ञानी और नृवंशविज्ञानी हमारे ग्रह की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने में एक अमूल्य भूमिका निभाते हैं। स्वदेशी समुदायों के संगीत, कला, ज्ञान और परंपराओं को रिकॉर्ड करके और उपलब्ध कराकर, ऐसे संस्थान विभिन्न संस्कृतियों के लिए व्यापक समझ और सम्मान फैलाने में मदद करते हैं।
∆ *डिजिटल सांस्कृतिक विरासत*
डिजिटल सांस्कृतिक विरासत का तात्पर्य अतीत की सांस्कृतिक विरासत, पारंपरिक सामग्रियों की देखभाल करना और इसे ऑनलाइन वातावरण में आज और कल की दुनिया के लिए सार्थक बनाना है।डिजिटल विरासत कंप्यूटर आधारित सामग्रियों जैसे पाठ, डेटाबेस, चित्र, ध्वनियाँ और सॉफ़्टवेयर से बनी होती है जिन्हें भविष्य की पीढ़ियों के लिए बनाए रखा जाता है।
∆ *सांस्कृतिक विरासतों का डिजिटल संरक्षण*
प्राचीन पुरातात्विक कलाकृतियाँ और पुरातात्विक स्थल अपनी उम्र और पर्यावरणीय परिस्थितियों के कारण स्वाभाविक रूप से क्षतिग्रस्त होने की संभावना रखते हैं। इसके अलावा, अप्रत्याशित मानव निर्मित आपदाओं की दुखद घटनाएँ भी हुई हैं, जैसे – ब्राज़ील के 200 साल पुराने राष्ट्रीय संग्रहालय और पेरिस में यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल नोट्रे डेम कैथेड्रल में आग लगना।
इसलिए, जलवायु परिवर्तन, प्राकृतिक आपदा, खराब नीति या अपर्याप्त बुनियादी ढांचे जैसी संभावित आपदाओं के सामने उन्हें संरक्षित करने के लिए सांस्कृतिक विरासत को डिजिटल बनाने वर्तमान युग की आवश्यकता है उदाहरण के लिए, कांग्रेस की लाइब्रेरी ने _नेशनल डिजिटल लाइब्रेरी प्रोग्राम_ नामक एक विशेष कार्यक्रम में अपने संग्रह को डिजिटल बनाना शुरू कर दिया है।
सांस्कृतिक विरासत का डिजिटलीकरण वास्तव में समय के साथ मानक गुणवत्ता में भौतिक वस्तु की एक आभासी प्रतिलिपि के संरक्षण के लिए एक अनूठा अवसर प्रदान करता है जो भविष्य की पीढ़ियों के लिए इसके सांस्कृतिक मूल्य के निरंतर उपयोग और प्रशंसा को सक्षम करेगा। हालाँकि, डिजिटलीकरण प्रक्रिया व्यापक भौतिक (हार्डवेयर) और अभौतिक (सॉफ्टवेयर) आईसीटी बुनियादी ढांचे पर निर्भर है जो प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से पर्यावरणीय दबावों और जलवायु परिवर्तन की तीव्रता में योगदान करती है ।
आईसीटी उपकरण डिजिटल सामग्री के संरक्षण और प्रसार दोनों को सक्षम कर रहा है, इसलिए यह डिजिटल संरक्षण के उद्देश्यों को पूरा करने वाली सभी आवश्यक प्रक्रियाओं के लिए अपरिहार्य है, डिजिटाइज्ड या जन्मजात डिजिटल सामग्री के सुरक्षित भंडारण से लेकर साझा करने और अंतिम उपयोगकर्ता तक पहुंच प्रदान करने तक है।
 _3D पुनर्निर्माण_ , गहराई और रंग की जानकारी दिए जाने पर किसी मनमाने ऑब्जेक्ट या दृश्य के आकार और उपस्थिति को कैप्चर करना और पुनः प्रस्तुत करना है। यह कंप्यूटर विज़न क्षेत्र के भीतर एक व्यापक शोध क्षेत्र है जिसमें कई चरण शामिल हैं और अभी भी खुली समस्याएं हैं। सांस्कृतिक विरासत का डिजिटल संरक्षण 3D पुनर्निर्माण का एक विशेष रूप से चुनौतीपूर्ण अनुप्रयोग है। सांस्कृतिक विरासत की वस्तुएं और स्थल एक-दूसरे से बहुत भिन्न होते हैं और 3D पुनर्निर्माण की अधिकतम निष्ठा एक मुख्य आवश्यकता है।
∆ *सांस्कृतिक विरासतों के संरक्षण हेतु राजस्थान की पहल*
सांस्कृतिक विरासत स्थलों की बात करें तो भारत सबसे समृद्ध देशों में से एक है। संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) ने 27 सांस्कृतिक स्थलों और संरचनाओं को विश्व धरोहर स्थलों के रूप में चिन्हित किया है। हालांकि, देश की कई ऐतिहासिक इमारतें और स्मारक उपेक्षित अवस्था में हैं। अब डिजिटल तकनीक इस विरासत को भावी पीढ़ी के लिए संरक्षित करने में मदद कर रही है, साथ ही पर्यटन को भी बढ़ावा दे रही है। राजस्थान सरकार ने अमेरिका स्थित 3D डिजाइन प्रौद्योगिकी फर्म ऑटोडेस्क की सबसे उन्नत डिजाइन तकनीक का उपयोग करके स्मारकों को संरक्षित करने का बीड़ा उठाया है। सूचना प्रौद्योगिकी और संचार विभाग के सहयोग से, राज्य सरकार ने राज्य में मौजूदा विरासत संरचनाओं को स्कैन और डिजिटाइज़ करने के लिए अपनी तरह की पहली परियोजना शुरू की है “पैमाने और परिमाण के संदर्भ में यह दुनिया की पहली ऐसी परियोजना है।”
अब तक इस परियोजना में अल्बर्ट हॉल संग्रहालय, जंतर मंतर, हवा महल, उदयपुर सिटी पैलेस, जयपुर सिटी पैलेस, अल्बर्ट पैलेस, जयपुर में चारदीवारी वाले शहर के सात द्वारों के लिए सही पैमाने पर निर्मित 3D मॉडल तैयार किए हैं। “वर्तमान में, आमेर किला और कुंभलगढ़ किले को स्कैन किया जा रहा है,” जो बिल्डिंग डिजिटलीकरण, संरक्षण और जीर्णोद्धार से संबंधित सभी परियोजनाओं के लिए ऑटोडेस्क में वैश्विक प्रमुख हैं।
राज्य वास्तुकला का सफल डिजिटलीकरण _राजधारा_ जैसी अन्य पहलों के साथ मिलकर काम कर सकता है, ताकि राज्य को स्मार्ट बनाया जा सके । _राजधारा_  रेगिस्तानी राज्य का एक प्रभावी और एकीकृत जीआईएस बुनियादी ढांचा स्थापित करने के लिए राज्य सरकार की एक विशेष पहल है, ताकि सुशासन, सतत विकास और नागरिक सशक्तीकरण को सक्षम बनाया जा सके और राज्य- व्यापी मानकीकृत जीआईएस संपत्ति डेटाबेस बनाए रखा जा सके।
बीकानेर स्थित _राजस्थान राज्य अभिलेखागार_ देश के सबसे अच्छे और चर्चित अभिलेखागारों में से एक है। इस अभिलेखागार की स्थापना 1955 में हुई और यह अपनी विपुल व अमूल्य अभिलेख निधि के लिए प्रतिष्ठित है। अभिलेखागार देश का पहला _ई अभिलेखागार_ है। 26 सितम्बर 2013, को जारी इनकी वेबसाइट के जरिए दूर दराज से शोध करने वाले विद्यार्थी और इतिहासकार सिर्फ एक क्लिक पर 35 लाख अभिलेखों का अध्ययन कर सकते हैं। वेबसाइट के जरिए बीकानेर रियासत के 12 लाख, जयपुर रियासत के 11 लाख और जोधपुर रियासत के 7.5 लाख ‘अभिलेख’ ऑनलाइन किए गए हैं। इसके साथ ही अलवर और सिरोही के महत्वपूर्ण रजिस्ट्री अभिलेखों और ऐतिहासिक आदेशों को भी _डिजिटलाइज_ किया गया है। ई-रिकॉर्डिंग के रूप में यहाँ बैठ कर 246 स्वाधीनता सेनानियों के संस्मरण भी सुने जा सकते हैं।
बदलते वक्त के साथ अभिलेखागार को अद्यतन करने की अनेक योजनाएं जारी हैं। इनमें दुर्लभ दस्तावेजों का डिजिटलीकरण या कंप्यूटरीकरण शामिल है। _माइक्रोफिल्म_ बनाने का काम भी इस दिशा में उठाया गया कदम है ताकि दुर्लभ दस्तावेजों की आयु को और बढाया जा सके। इन्हें और बेहतर ढंग से संरक्षित किया जा सके। बीकानेर स्टेट के पट्टा रिकार्ड की प्रतिलिपि जारी करने के लिए एकल खिड़की योजना है तो स्वतंत्रता सेनानी चित्र गैलरी बनाने की दिशा में भी काम जारी है। राज्य सरकार की वेबसाइट पर अभिलेखागार की ‘डिपार्टमेंट ऑफ आर्काइव्ज’ पर ये दस्तावेज उपलब्ध हो सकेंगे तथा इसी तरह एक महत्वाकांक्षी योजना यहां आर्काइवल म्यूजियम बनाने की है।
∆ *सांस्कृतिक विरासतों के डिजिटल संरक्षण हेतु कार्यक्रम*
 _’डिजिटल मैपिंग ऑफ मॉन्यूमेंट्स ऑफ राजस्थान’_ कार्यक्रम के दौरान 5 नवम्बर 2020 को जवाहर कला केंद्र के फेसबुक पेज पर _’मैप आवर राजस्थान प्रतियोगिता’_ का आगाज हुआ। यह प्रतियोगिता कला एवं संस्कृति विभाग, राजस्थान सरकार, जवाहर कला केन्द्र और डिज़ाइन कॉहार्ट द्वारा इंडिया लॉस्ट एंड फाउंड (आईएलएफ) के सहयोग से आयोजित की गई थी । इसका उद्देश्य क्राउड-क्रिएटिव कैम्पेन के माध्यम से राजस्थान के हेरिटेज मेप का निर्माण करना है। यह राजस्थान के प्रसिद्ध और कम ज्ञात विरासत स्थलों को पुनः खोजने एवं प्रचार व प्रसार करने और लोगो से जोड़े रखने में मदद करेगा।
∆ *सांस्कृतिक विरासत तथा मूल्यों के संरक्षण की आवश्यकता*
सांस्कृतिक विविधता को बनाए रखने, पहचान की भावना को बढ़ावा देने और भविष्य की पीढ़ियों को ज्ञान हस्तांतरित करने के लिए इसका संरक्षण आवश्यक है और इस संरक्षण हेतु व्यक्तियों, समुदायों, सरकारों और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों को साथ आकर कार्य करना होगा ।