India’s Education Policy 2020: Direction of change in the education sector

(प्राचीन भारतीय ज्ञान  परंम्परा के विषेश संदर्भ में)

भारत की नई शिक्षा नीति 2020 (NEP 2020) देश के शिक्षा क्षेत्र में महत्वपूर्ण बदलाव की शुरुआत है। इस नीति का उद्देश्य शिक्षा के हर स्तर पर सुधार और बदलाव लाना है, जिसमें प्राथमिक, माध्यमिक, और उच्च शिक्षा शामिल हैं। 1986 में अपनाई गई शिक्षा नीति के बाद यह पहली व्यापक नीति है, जिसे 2020 में लागू किया गया। वर्तमान शिक्षा प्रणाली का उद्देश्य छात्रों की वास्तविक क्षमता को उजागर करने के बजाय, उन्हें एक आत्मकेंद्रित नौकरी-प्राप्ति केंद्रित व्यक्ति बनाने तक सीमित है। पश्चिमी शिक्षा प्रणाली भारतीय संस्कृति और ज्ञान परंपरा को नजर अंदाज करते हुए, भारतीय आत्मविश्वास, स्वतंत्र सोच, रचनात्मकता, और उद्यमशीलता की भावना को कमज़ोर करती है। वैश्विक स्तर पर तेजी से हो रहे बदलाव और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में प्रगति से भारतीय समाज में नाटकीय परिवर्तन हो रहे हैं।

भारतीय ज्ञान प्रणाली में दर्शन, व्यवहारिक शिक्षा, कला, कौशल, स्वास्थ्य, कृषि, और विज्ञान शामिल हैं। इनका अध्ययन, अनुकूलन और आधुनिक जीवन में एकीकरण, समाज में सकारात्मक परिवर्तन की शुरुआत करेगा। इसमें पारंपरिक चिकित्सा, ज्योतिष, और अन्य प्राचीन ज्ञान-विज्ञान की विस्तृत श्रृंखला शामिल है, जिसकी भारतीय संस्कृति और इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इस नीति के प्रमुख स्तंभों में वैदिक साहित्य शामिल है, जो भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता का आधार है। वैदिक साहित्य में दार्शनिक शिक्षा, नैतिक सिद्धांत और व्यवहारिक ज्ञान का समावेश है, जिसने सहस्त्राब्दियों से भारतीय जीवन शैली को आकार दिया है और साहित्य, कला, संगीत, वास्तुकला, और शासन सहित विभिन्न क्षेत्रों को प्रभावित किया है। आज योग और ध्यान का शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक उन्नयन में महत्वपूर्ण योगदान है। भारतीय सप्तदर्शन आत्मचिंतन का अद्वितीय दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हैं। न्याय दर्शन तर्क और ज्ञान मीमांसा पर केंद्रित है, जबकि वैशेषिक दर्शन परमाणु और उनके संयोजनों के माध्यम से प्रकृति की वास्तविकता का पता लगता है। सांख्य, योग, मीमांसा, और वेदांत दर्शन ने गहरी दार्शनिकता की नींव रखी है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति का उद्देश्य भारतीय ज्ञान प्रणाली की बुनियाद पर भारतीय शिक्षा प्रणाली में आमूलचूल परिवर्तन करना है। भारत विश्व में अपनी सांस्कृतिक विरासत, जीवन मूल्यों, और समृद्ध साहित्य के कारण एक विशिष्ट स्थान रखता है। इसलिए, भारतीय शिक्षा प्रणाली में लोकाचार को मजबूत करना और सामाजिक एवं वैज्ञानिक आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए स्वदेशी और पारंपरिक तरीकों को अपनाना ज़रूरी है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति का पाठ्यक्रम यह सुनिश्चित करेगा कि शिक्षा छात्रों के लिए प्रासंगिक, भरोसेमंद और प्रभावी हो, जिससे युवा भारत अपनी समृद्ध संस्कृति और विरासत पर गर्व कर सके।

आज मानवता के सामने सबसे बड़ी चुनौतियों में जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद, और मानसिक अवसाद शामिल हैं। इनसे निपटने के लिए एक समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिससे मानव और प्रकृति में सामंजस्य स्थापित हो सके। इस संबंध में भारतीय ज्ञान प्रणाली एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। हालांकि, आधुनिक विज्ञान के युग में वैश्विक ज्ञान परंपराओं को नज़रअंदाज़ करना उचित नहीं होगा। असली चुनौती प्राचीन ज्ञान को आधुनिक वैज्ञानिक दृष्टिकोण और तर्कसंगतता के संदर्भ में पुनर्व्याख्या करना, समझना और व्यवहार में लाना है।

भारत की परंपराओं को आज विश्व अपना रहा है, ऐसे में हमें और हमारी भावी पीढ़ियों को भी भारत के प्राचीन मूल्यों को यथोचित महत्व देना होगा। इसके लिए आंतरिक ज्ञान, गुण, शक्ति, और आदर्शों को सही तरीके से पहचानना और सही दिशा में प्रेरित करना आवश्यक है। भारत की प्राचीन ज्ञान परंपरा, कला, संस्कृति, दर्शन, समाजशास्त्र, विज्ञान, और प्रबंधन सहित विभिन्न क्षेत्रों में एक व्यापक दृष्टिकोण प्रदान करती है। हमें इस दृष्टिकोण को शिक्षा जगत में अपनाकर विकास की प्रक्रिया को और अधिक समृद्ध बनाना होगा।

 

   डॉ. रेणुका (सहायक आचार्य, हिंदी विभाग)

 माधव विश्वविद्यालय पिंडवाड़ा, सिरोही, राजस्थान